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CONTENTS
| भोजवृत्तिः क्या है ?|भोजवृत्ति तथा उसका रचनाकाल|भोजराज का जीवन वृत्तान्त|भोजवृत्ति की समालोचना – वैशिष्ट्यम्|

योगसूत्र के भाष्य ग्रन्थ तथा आचार्य - 3

भोजराज  

भोजवृत्तिः के रचनाकार

अन्य लिंक : महर्षि पतञ्जलि|वाचस्पतिमिश्र|भोजराज|विज्ञानभिक्षु|

भोजवृत्तिः क्या है ?

भोजराज की योगसूत्रों पर व्याख्या स्वरूप लिखी गयी यह कृति योगसूत्रों को स्पष्ट करने वाली उत्तम रचनाओं में से है। भोजराज की वृत्ति पतञ्जलि अभीष्ठ योगमन्तव्यों की विशदतया व्याख्या प्रस्तुत करती है।

भोजवृत्ति तथा उसका रचनाकाल

भोजवृत्ति तथा उसका रचनाकाल  

भोज के राज्य का समय 1075-1110 विक्रमसंवत माना जाता है।

भोज की वृत्ति का योग के अन्य व्याख्याकारों ने भी प्रचुरता से उल्लेख किया है। नागोजिभट्ट (विक्रमसंवत 1772) की वृत्ति में 1/46, 2/5, 2/12 एवं 3/25 आदि स्थलों पर भोजवृत्ति का उल्लेख किया गया है।

भोजवृत्ति योगविद्वज्जनों के बीच समादरणीय एवं प्रसिद्ध है। योगग्रन्थ के इस सुवासित पुष्प में स्वग्रन्थ के रचनाकार होने  का स्वंय उल्लेख किया है -  

धारेश्वर-भोजराज-विरचितायां राजामार्तण्डाभिधानायाम् 

जिससे अभिप्राय है कि धारेश्वर भोजराज राजा मार्तण्ड (जिन्हें इस नाम से अभिहित किया जाता है) के द्वारा विरचित योग ग्रन्थ में............. मार्तण्ड से अभिप्राय सिंह भोज का दूसरा अभिहित नाम रणरंगमल्ल  का भी उल्लेख ग्रन्थ की प्रस्तावना-श्लोक की पाँचवीं पंक्ति में मिलता है।

ऐसा प्रतीत होता है कि भोज शैव भक्त भी रहे हों क्योंकि तृतीय पाद के मंगलाचरणश्लोक में आपने भूतनाथः भूतये एवं ग्रन्थारम्भ के मंगलाचरण के पद्यों में देहार्धयोगः शिवयोः...... का सश्रद्धया उल्लेख किया है। आप विंध्यवासी थे क्योंकि एक स्थल भोजराज द्वारा कहा गया है यह अभिप्राय मेरे विंध्यवासी द्वारा कहा गया है  

व्याकरण, धर्मशास्त्र, शैवदर्शन, ज्योतिष, वास्तुशास्त्र, रणविद्या आदि विषयों पर आपके ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। प्रसिद्ध धर्मशास्त्र ग्रन्थ याज्ञवल्क्यस्मृति के लब्धप्रतिष्ठित व्याख्याकार अर्थात् मितक्षराकार विज्ञानेश्वर आपके सभा में थे, ऐसी प्रसिद्धि है।

भोजराज का जीवन वृत्तान्त

 राजा भोज एक प्रामाणिक लेखक हैं। आपके जीवनवृतान्त मेरुतुङ्गकृत प्रबन्धचिन्तामणि, बल्लाल द्वारा रचित भोजप्रबन्ध तथा कीर्तिकौमुदी आदि ग्रन्थों में मिलते हैं। भोजराज परमार वंशीय थे। आपके पिता का नाम राजा जयसिंह था।

भोजवृत्ति की समालोचना वैशिष्ट्यम्

भोजवृत्ति की समालोचना वैशिष्ट्यम्

ग्रन्थकर्ता ने अपने ग्रन्थ के प्रयोजन के विषय में लिखा है कि दूसरे(व्याख्याकारों के द्वारा जो भी दुर्बोध रहा है उसके सरल प्रकाशना के लिये वे इस ग्रन्थ का प्रणयन कर रहे हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में उन्होंने स्वग्रन्थ की प्रसंसा भी की है

उत्सृज्य विस्तरमुदस्य विकल्पजालं फल्गु प्रकाशमवधार्य सम्यगर्थान् 

भोजराज ने अपनी वृत्ति में अन्य मतान्तरों का खण्डन भी किया है ग्रन्थ के आरम्भ में ही आत्मानन्द को अधिकृत कर वे अद्वैत, नैयायिक आदि अन्य के मतों का खण्डन भी करते हैं।

भोज की वृत्ति में योग के सूक्ष्मार्थों को भी उद्भासित करने का भी प्रयास किया गया है यथा 2/23 सूत्र में दृष्टु-दृश्य-संयोगस्वरूपं के वर्णन में आपकी गम्भीरता तथा वर्णनात्मकता तुलनात्मक रूप से उत्कृष्ट है। इसी प्रकार विशोका या ज्योतिष्मती की व्याख्या में आपने बतलाया है कि ज्योतिःशब्देन सात्विक प्रकाश उच्यते1/36 जो कि अन्य व्याख्या से इतर एवं सुस्पष्ट ग्राह्य कहा जा सकता है। इसी के साथ 1/36 में संवेग  पद की विशद विविध व्याख्याकारों में  आप के ही द्वारा की गयी है। 

भोजराज ने पतंजलि योगसूत्र के चतुर्थ पाद कैवल्य पाद के सोलहवें सूत्र को योगसूत्र का वास्तविक सूत्र नहीं माना है।

संभवतः ग्रन्थकार द्वारा योग के अतिरिक्त व्याकरण एवं आयुर्वेद के ग्रन्थों की भी रचना की है। क्योंकि इसके स्फुट संकेत उनके व्याख्या के तरीके तथा सूत्रों के विवरण से मिलता है।

 
 

Authored & Developed By               Dr. Sushim Dubey

&दार्शनिक-साहित्यिक अनुसंधान                      ?  डॉ.सुशिम दुबे,                             G    Yoga

Dr. Sushim Dubey

® This study material is based on the courses  taught by Dr. Sushim Dubey to the Students of M.A. (Yoga) Rani Durgavati University, Jabalpur  and the Students of Diploma in Yoga Studies/Therapy of  Morarji Desai National Institute of Yoga, New Delhi, during 2005-2008 © All rights reserved.