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CONTENTS
|योगवार्तिक क्या है ?|विज्ञानभिक्षु तथा योगवार्तिक|योगवार्तिक का काल|विज्ञानभिक्षु के अन्य ग्रन्थ|विज्ञानभिक्षु का योगवार्तिक -  विशिष्टता|विज्ञानभिक्षु के योगवार्तिक की समीक्षा|

योगसूत्र के भाष्य ग्रन्थ तथा आचार्य - 4

विज्ञानभिक्षु  

योगवार्तिक के रचनाकार

अन्य लिंक : महर्षि पतञ्जलि|वाचस्पतिमिश्र|भोजराज|विज्ञानभिक्षु|

योगवार्तिक क्या है ?

विज्ञानभिक्षु कृत योगवार्तिक ग्रन्थ योग का प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है। यह पतजंलि के योगसूत्र ग्रन्थ पर सबसे प्रमाणिक भाष्य- व्यास भाष्य की सुष्पष्ट व्याख्या प्रस्तुत करता है।

विज्ञानभिक्षु तथा योगवार्तिक

विज्ञानभिक्षु तथा योगवार्तिक  

विज्ञानभिक्षु के सन्दर्भ में प्रथमतया दो बिन्दु अवधाननीय हैं प्रथम उनका नाम, तथा द्वितीय वार्तिक से अभिप्राय  

  1. विज्ञानभिक्षु के नाम में भिक्षु लगा होने के कारण प्रायः उन्हें बौद्ध समझ लिया जाता है। यह केवल नामका अंग ही कि बौद्धसूचक। ये ग्रन्थकाल बौद्ध नहीं हैं। 
  2. वार्तिक शब्द की व्याख्या/निष्पत्ति है

उक्तानुक्तदुरुक्तचिन्ताकरत्वं वार्तिकम् 

तात्पर्य है कि उक्त अर्थात् कहे गये, अनुक्त अर्थात् अनकहे, दुरुक्त अर्थात् कठिनता से कहे गये, क्लिष्ट आदि विषयों पर, चिन्ताकरत्वं अर्थात् चिन्ता करना, विचार करना, स्पष्ट करना वार्तिक है। इसप्रकार योग वार्तिक उक्त, अनुक्त एवं दुरुक्त योग के विषयों (योगभाष्य में) विचार कर उन्हें स्पष्ट करने का प्रयास या ग्रन्थ है।

योगवार्तिक का काल

योगवार्तिक तथा योगवार्तिक का काल  

विज्ञानभिक्षु का योगवार्तिक ग्रन्थ उनके सांख्यभाष्य के पश्चात् रचित हुया है ऐसा उनके वार्तिक ग्रन्थ(2/22) तथा (3/55) से पता चलता है। विज्ञानभिक्षु का समय विद्वानों के द्वारा 16 वीं शताब्दी के मध्य में माना जाता है। उदयवीर शास्त्री आदि विद्वानों ने विभिन्न समीचीन तर्कों के द्वारा उनका समय 14 शताब्दी ईसा का बतलाया है। आधुनिक योगशास्त्र के लब्धप्रतिष्ठित विद्वान रामशंकर भट्टाचार्य भी इसे सम्यक मानते हैं। (पातञ्जल योगदर्शनम्, भूमिका, पृ.73)

विज्ञानभिक्षु के अन्य ग्रन्थ

विज्ञानभिक्षु के अन्य ग्रन्थ-

विज्ञानभिक्षु द्वारा अनेक ग्रन्थ प्रणीत किये गये हैं

  1. योगवार्तिकम्
  2. सांख्यषडध्यायीभाष्यम्,
  3. ब्रह्मसूत्रविज्ञानामृतभाष्यम्,
  4. सांख्यसारसंग्रह,
  5. योगसारसंग्रह,
  6. उपदेशरत्नमाला, (उपलब्ध नहीं)
  7. गीताभाष्य (उपलब्ध नहीं)

विज्ञानभिक्षु का योगवार्तिक -  विशिष्टता

विज्ञानभिक्षु का योगवार्तिक -  विशिष्टता

प्रस्तुत सन्दर्भ में हमारा विवेचनीय विषय योगवार्तिक ही है। योगवार्तिक का विभिन्न प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित है। विज्ञानभिक्षु अत्यन्त प्रसिद्द साख्याचार्य के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। आपके वार्तिक ग्रन्थ में योगविवेचन में गहरी अन्तर्दृष्टि दिखायी देती है। साथ ही समृति-पुराण आदि सन्दर्भों के द्वारा आपने अपने ग्रन्थ में सांख्य-योग शास्त्र का सुष्ठुतया परिपोषण किया है। आपने अपने वार्तिकग्रन्थ में मौलिकता को भी प्रदर्शित किया है। तथा योगभाष्य पर उपलब्ध अन्य ग्रन्थों से अपने विचार मिलने को या उन ग्रन्थों में न्यूनताओं का भी उल्लेख प्रदर्शित किया है। जैसे योगसूत्र के प्रथमपाद के 19 वें तथा 21 वें सूत्र की व्याख्या में वे वाचस्पति मिश्र के मत का भी खण्डन करते है।  

व्याख्या के प्रसंग में भी विज्ञानभिक्षु के द्वारा सम्बन्धित अनेक सम्प्रदायों, दार्शिनिकों के वचनों तथा मतों का उल्लेख कर अपने ग्रन्थ को अधिक समृद्ध तथा उपयोगी बनाया गया है। जैसे नास्तिकः 2/15, वेदान्तमत - 4/19, न्यायवैशेषिक दर्शनम् - 4/21, 3/13, 2/20, 2/5 योगशास्त्रविशेष - 3/30, योगशास्त्रानन्तरम् - 3/26, 3/28 यह उनके ग्रन्थ का मूल्यवत्ता को बढ़ाता है। 

इसके साथ ही योगवार्तिककार विज्ञानभिक्षु के द्वारा योगभाष्य के अनेक पाठभेद का भी निदर्शन अपने ग्रन्थ में किया है। पाठभेद से अभिप्राय है कि पातजंलि-योगसूत्र में तथा उसपर उपलब्ध व्यासभाष्य व्याख्या में एक ही सूत्र की व्याख्य़ा में किसी के द्वारा किसी शब्द तथा अन्य के द्वारा अन्य शब्द का प्रयोग किया जाना। वस्तुतः इससे व्याख्या में ही महत्वपूर्ण अन्तर पड़ता है। अतः प्रमाणिक अर्थ निरूपण के लिये पाठभेद जानना आवश्यक होता है।  

विज्ञानभिक्षु के द्वारा योगसूत्र में पाठभेद - 1/17, 1/21, 1/25, 2/23

व्यासभाष्य के कुछ पाठ भेद दर्शाये गये हैं - 1/24, 1/10, 3/32, 4/13 

उपरोक्त पाठभेद विज्ञानभिक्षु के मतानुसार कुछ तो यथार्थ हैं तथा कुछ वास्तव में लेखक के प्रमाद के कारण (लेखनत्रुटि) स्वरूप उत्पन्न हुये है।

विज्ञानभिक्षु के योगवार्तिक की समीक्षा

विज्ञानभिक्षु के योगवार्तिक की समीक्षा

पतजलि के योगसूत्र को अवगम्य करने के लिये व्यास भाष्य प्रमाणिक व्याख्या है तो व्यास भाष्य को समझने के लिये विज्ञानभिक्षु की व्याख्या निश्चित रूप से अत्यन्त उपोयगी तथा भाष्यार्थावबोधकारिणि तथा विशिष्टसूचनाप्रदायिनी भी है।  योगशास्त्र पर विभिन्न मत-मतान्तरों पर भी इस ग्रन्थ में विज्ञानभिक्षु के द्वारा वर्णन-आलोचन-अनुशीलन प्रस्तुत किया गया है साथ ही साथ रामशंकर भट्टाचार्य के मतानुसार समकालीन मतों के साथ भी विज्ञानभिक्षु के द्वारा समन्वय का प्रयास किया गया है।(पातञ्जल योगदर्शनम्, पृ.74)

 
 

Authored & Developed By               Dr. Sushim Dubey

&दार्शनिक-साहित्यिक अनुसंधान                      ?  डॉ.सुशिम दुबे,                             G    Yoga

Dr. Sushim Dubey

® This study material is based on the courses  taught by Dr. Sushim Dubey to the Students of M.A. (Yoga) Rani Durgavati University, Jabalpur  and the Students of Diploma in Yoga Studies/Therapy of  Morarji Desai National Institute of Yoga, New Delhi, during 2005-2008 © All rights reserved.