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CONTENTS
| तत्त्ववैशारदी क्या है?|वाचस्पति मिश्र का समय|वाचस्पति मिश्र का अन्य ग्रन्थों में उल्लेख|वाचस्पति मिश्र के ग्रन्थ|तत्त्ववैशारदी पर टीका|व्यास भाष्य के पाठ|तत्त्वैशारदी  -  आलोचन-समीक्षा-विशिष्टता|

योगसूत्र के भाष्य ग्रन्थ तथा आचार्य - 2

वाचस्पति मिश्र  

तत्त्ववैशारदी के रचनाकार

अन्य लिंक : महर्षि पतञ्जलि|वाचस्पतिमिश्र|भोजराज|विज्ञानभिक्षु|

तत्त्ववैशारदी क्या है ?

पतंजलि योगसूत्र के व्यास भाष्य के प्रमाणिक व्याख्याकार के रूप में वाचस्पति मिश्र का ग्रन्थ तत्त्ववैशारदी अग्रगण्य है। वाचस्पति मिश्र को सर्वतन्त्रस्वतन्त्र कहा जाता है।

वाचस्पति मिश्र का समय

वाचस्पति मिश्र का समय (A.D. 841)

 वाचस्पति मिश्र राजा नृगराज के समय में हुये हैं ऐसा उनके ग्रन्थ भामती (ब्रह्मसूत्र पर टीका के मंगलाचरण) में आये विवरण से ज्ञात होता है। सांख्य-योग शास्त्र के इतिहासकार उदयवीर शास्त्री के अनुसार वाचस्पति मिश्र के द्वारा स्वयं अपने होने के समय का उल्लेख किया है जो कि विक्रम संवत् 898 एवं ईस्वी संवत् 841 है। वाचस्पति मिश्र के गुरु संभवतः त्रिलोचन नाम के थे, इसका उल्लेख मिश्र जी के द्वारा उनके ग्रन्थ तात्पर्यटीका में इस प्रकार आता है त्रिलोचनगुरुन्नीत........ (त्रिलोचन गुरु के लिये नतमस्तक होते / झुकते हुये। त्रिलोचन प्रसिद्ध न्याय शास्त्री थे।

वाचस्पति मिश्र का अन्य ग्रन्थों में उल्लेख

वाचस्पति मिश्र का अन्य ग्रन्थों में उल्लेख

 लघुमञ्जूषा नामक ग्रन्थ में तत्त्ववैशारदी का उल्लेख आया है। योगसूत्र के टीकाकार भी वाचस्पति मिश्र के मत का प्रमाण के रूप में उल्लेख करते है। विज्ञानभिक्षु के द्वारा भी वाचस्पति के मत का कई स्थलों पर उल्लेख खण्डन-मण्डन के रूप में आया है। सर्वदर्शनसंग्रहकार मध्वाचार्य के द्वारा भी पातंजल दर्शनप्रकरण में वाचस्पति मिश्र के व्याख्यान उद्धृत किया गया है।

 

वाचस्पति मिश्र के ग्रन्थ

 
 

वाचस्पति मिश्र के ग्रन्थ- 

  1. तत्त्ववैशारदी योगभाष्य पर टीका,
  2. तत्त्वकौमुदी  - सांख्यकारिका पर टीका,
  3. न्यायसूची निबन्ध न्याय सूत्र सम्बन्धी,
  4. न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका न्यायवार्तिक पर टीका,
  5. न्याय कणिका मण्डनमिश्र के विधिविवेक ग्रन्थ पर टीका,
  6. तत्त्वबिन्दु शब्दतत्त्व तथा शब्दबोध पर आधारित लघु ग्रन्थ,
  7. तत्त्वसमीक्षा ब्रह्मसिद्धि ग्रन्थ का टीका,
  8. ब्रह्मसिद्धि   - वेदान्त विषयक ग्रन्थ
  9. भामती    - ब्रह्मसूत्र पर टीका सर्वाधिक मान्य एवं आदरणीय मिश्र महोदय के ग्रन्थों में।

 
 

तत्त्ववैशारदी पर टीका

 
 

तत्त्ववैशारदी पर टीका

व्यास भाष्य पर वाचस्पति मिश्र का टीका तत्त्वैशारदी है तथा तत्त्ववैशारदी को सुस्पष्ट करने के लिये इस पर भी टीका मिलता है जिसका नाम पातंजलरहस्य है तथा इसके रचयिता राघवानन्द सरस्वती हैं।

 
 

तत्त्ववैशारदी में व्यास भाष्य के पाठ भेदों का निदर्शन

 
 

 वाचस्पति मिश्र के द्वारा व्यास भाष्य के कुछ पाठ भेदों का निर्देश किया गया है

1/10, 2/39, 2/27, 3/23, 3/15, 3/10, 4/19

 
 

तत्त्वैशारदी  -  आलोचन-समीक्षा-विशिष्टता

 
 

तत्त्ववैशारदी में अन्य विभिन्न दार्शनिक मतों का भी उल्लेख किया है जिनमें वैनाशिक, प्रवादुक, विज्ञानवादी, स्वमत एवं नास्तिक मतों का उल्लेख है।

इसके साथ ही भाष्य में आये विभिन्न शब्दों का वाचस्पति मिश्र के द्वारा संप्रदाय सहित उल्लेख कर भाष्य की स्पष्टता में अभिवृद्धि की है। यथा अपरे वैशेषिका (3/53) भाष्य में पञ्चशिखासूत्र के उदारण के प्रंसग में पंचशिखा नाम नहीं कहा गया है किन्तु वाचस्पति मिश्र ने उनके नाम का सम्बन्धित प्रंसग में स्मरण करा दिया है।

इसीप्रकार योगसूत्र में मूर्धपद(3/32) आया है। वाचस्पति मिश्र इसे स्पष्ट करते है कि यहाँ मूर्ध पद से अभिप्राय सुषुम्ना नाड़ी है। इसीप्रकार 1/17 में सास्मित समाधि के विषय की गयी व्याख्या अधिक ग्राह्य एवं युक्त है। इसीप्रकार 1/32 के स्पष्टीकरण में आपने कहा है कि एकतत्त्वाभ्यास से ईश्वर शब्द लक्षित होता है। परन्तु यदि ईश्वर ही कहना था क्यों नहीं इसको ईश्वर ही कह दिया।

इसी प्रकार अन्य स्थलों पर मौलिक जानकारी मिलती है जैसे -

हिरण्यकगर्भकृतयोगशास्त्रम् 1 /1 इसमें योगशास्त्र को हिरण्यगर्भयोग से अभिहित किया गया है। (तत्त्ववैशारदी 1/1)

यजुर् योगे तथा योग समाधि के मूल सन्दर्भ की जानकारी देती है। तत्त्ववैशारदी के अनुसार ये दोनों व्याकरण के आचार्य पाणिनी के ग्रन्थ अष्टाध्यायी के धातुपाठ में संस्कृत की प्रमुख क्रियाओं ( main verbs) की सूची इस रूप अर्थित किये गये हैं। (तत्त्ववैशारदी 1/1)

इसप्रकार कहा जा सकता है कि वाचस्पति मिश्र की तत्त्ववैशारदी ग्रन्थ योग का एक टीकाग्रन्थ ही नहीं है अपितु इसमें अनेक मौलिक विचार भी समाहित हैं, जो योगपरम्परा के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी देते हुये उसे समृद्ध भी करते हैं।

 
   

 

 

Authored & Developed By               Dr. Sushim Dubey

&दार्शनिक-साहित्यिक अनुसंधान                      ?  डॉ.सुशिम दुबे,                             G    Yoga

Dr. Sushim Dubey

® This study material is based on the courses  taught by Dr. Sushim Dubey to the Students of M.A. (Yoga) Rani Durgavati University, Jabalpur  and the Students of Diploma in Yoga Studies/Therapy of  Morarji Desai National Institute of Yoga, New Delhi, during 2005-2008 © All rights reserved.