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CONTENTS
| योगसूत्र क्या है ?|“योगसूत्र” से तात्पर्य|योगसूत्र का रचना काल|योगसूत्र के भाष्य ग्रन्थ एवं योग परम्परा|योगसूत्र की संरचना|

योग के प्राचीन ग्रन्थ तथा आचार्य - 1

महर्षि पतञ्जलि

योगसूत्र के रचनाकार

अन्य लिंक : महर्षि पतञ्जलि|वाचस्पतिमिश्र|भोजराज|विज्ञानभिक्षु|

योगसूत्र क्या है ?

पतञ्जलि योगसूत्र योग के आधारभूत ग्रन्थों में से है। महर्षि पतञ्जलि इसके प्रणेता माने जाते हैं। जिन्होंने सनातन/आद्य परम्परा से चले रहे योग के मूल मन्तव्यों का संकलन किया तथा इसे योग सूत्र नाम दिया।

योगसूत्र से तात्पर्य

योगसूत्र से तात्पर्य  (Meaning of Yoga Sutra) –

योगके सूत्रों का संग्रह या संकलन। सूत्र से अभिप्राय है अल्पाक्षरं सूत्रम् अर्थात् अल्पक्षर की संहति सूत्र है। जिस प्रकार माला के सूत्र में समस्त मोती पिरोए रहते हैं, बँधे रहते हैं। उसी प्रकार योग के सूत्र में योग के समस्त मोती महर्षि पतञ्जलि द्वारा पिरोए गये हैं।

योगसूत्र का रचना काल

योगसूत्र का रचना काल (The Time Period of Yoga Sutra) –

 योग सूत्र के रचना काल के सम्बन्ध में विविध विचारकों ने विविध मत दियें हैं। तथापि जिस तिथी पर उनका मतैक्य मिलता है वह 200 शताब्दी ईसापूर्व के आसपास मानी जा सकती है।

भारतीय परम्परा में सूत्र साहित्य के रचना का काल भी 500 शताब्दी ईसा पूर्व से 500 ईसा पश्चात् है। इस दृष्टि से योग सूत्र का रचना का काल इसके प्रारम्भ-मध्य के आस पास ही यथेष्ट प्रतीत होता है।

 

योगसूत्र के भाष्य ग्रन्थ एवं योग परम्परा 

 
 

योगसूत्र के भाष्य ग्रन्थ एवं योग परम्परा 

(Commentaries on Yoga Sutra and Yoga Tradition) 

महर्षि पतञ्जलि के योग सूत्र पर प्रथम प्रमाणिक व्याख्या व्यास भाष्य के रूप में प्राप्त होती है। व्यास भाष्य से तात्पर्य है- व्यास के द्वारा महर्षि पतञ्जलि के योग सूत्र पर दी गयी व्याख्या। व्यास भाष्य का रचना काल 200-400 ईसा पश्चात् माना जाता है। इसी क्रम में नवमीं शताब्दी में वाचस्पति मिश्र में योगसूत्र एवं व्यास भाष्य दोनों पर ही अपनी व्याख्या दी जो कि तत्त्ववैशारदी के नाम से प्रसिद्ध है।  आगे चौदहवीं शताब्दी में योगसूत्र पर महत्वपूर्ण व्याखा विज्ञानभिक्षु की प्राप्त होती है जिसका नाम लेखक ने योगवार्तिक दिया है।  एवं सोलहवीं शताब्दी के आसपास धारेश्वर भोज के नाम से पतञ्जलि योगसूत्रों पर विस्तृत व्याख्या प्राप्त होती है जो कि भोजवृत्ति  के नाम से प्रसिद्ध है। भोज ने अपने इस ग्रन्थ में योग के अन्य महत्वपूर्ण ग्रन्थों से विभिन्न सम्बद्ध सन्दर्भ भी दिये हैं जिससे भोजवृत्ति एक समृद्ध ग्रन्थ का कलेवर प्राप्त करता है।

 
 

योगसूत्र की संरचना

 
 

         योगसूत्र का कलेवर- (Structure of the Yoga Sutra)  

महर्षि पतञ्जलि का योगसूत्र चार पादों या अध्यायों में है। जो कि क्रमशः

1.                                 समाधिपाद

2.                                 साधनापाद,

3.                                 विभूतिपाद एवं

4.                                 कैवल्यपाद हैं। 

1.          समाधिपाद - समाधिपाद में ग्रन्थकर्ता ने सर्वप्रथम ग्रन्थ का उद्देश्य अथ योगानुशानम् के रूप में तथा योगकी परिभाषा योगश्चित्तवृत्तियों का निरोध है, को देते हुए चित्त वृत्तियों के निरोध से उत्पन्न होने वाली स्थित को समाधि एव दृष्टा(साधक) के स्वरूप की प्राप्ति कहा है। इस समाधि के सबीज एवं निर्बीज आदि विभिन्न स्थितियों की भी चर्चा भी कही गयी है। 

2.          साधनापाद साधनापाद में साधना से अभिप्राय साधन भी है, जिन साधनों या विधियों से समाधि की स्थिति या चित्त वृत्ति के निरोध की स्थिति संभव होगी उनकी चर्चा साधनापाद में संरक्षित है। इसी हेतु योग के आठ अंग या अष्टांग योग- यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि में प्रथम पाँच की चर्चा भी यहीं पर की गयी है।

3.          विभूतिपाद - योगसूत्र का तृतीय पाद या अध्याय है। विभूति से शाब्दिक तात्पर्य वि+भूति या विशेष रूप से हो जाने(स्थिति को प्राप्ति करने) में है। योग साधना की प्रौढ़ता साधक के अन्दर विशिष्ट क्षमतायें उत्पन्न कर देती है जैसे उसकी देह(अस्तित्व) अणु के समान हो सकता है-इसे अणिमा कहा गया है। इसी क्रम में अष्ट सिद्धियों की विवेचना की गयी है।

4.     कैवल्यपाद - योगसाधना की पूर्णता कैवल्य या मोक्ष है। यही समाधि की भी चरम अवस्था है। जिसमें साधक अपने चेतन या शुद्धस्वरूप की अनूभूति एवं प्राप्ति करता है।

 
 
 

Authored & Developed By               Dr. Sushim Dubey

&दार्शनिक-साहित्यिक अनुसंधान                      ?  डॉ.सुशिम दुबे,                             G    Yoga

Dr. Sushim Dubey

® This study material is based on the courses  taught by Dr. Sushim Dubey to the Students of M.A. (Yoga) Rani Durgavati University, Jabalpur  and the Students of Diploma in Yoga Studies/Therapy of  Morarji Desai National Institute of Yoga, New Delhi, during 2005-2008 © All rights reserved.