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CONTENTS

|हम मूल्य किसे कहते हैं ?|मूल्य की खोज तथा इतिहास|मूल्यों के प्रकार(Types of Value)-1|“पुरुषार्थ”- भारतीय परम्परा में मूल्य|शाब्दिक अर्थमूल्य की परिभाषायें (Definition of Value)|मूल्य की विशेषताएँ|Strategy for Understanding|

Yoga & Value - 1

Concept, Definition & Types of Value

अन्य लिंक : | Concept, Definition & Types of Value |Yoga as a Value & Yoga as Practice |Past Developments and Future Horizon|योग – एक वैश्विक मूल्य |

हम मूल्य किसे कहते हैं ?

भूमिका(Introduction) –

           मनुष्य सभ्यता के आदि से ही अपने अस्तित्व के विकास तथा परिमार्जन के लिये प्रयासरत् रहा है। सदैव उसने साधारण से अच्छा तथा अच्छे से बेहतर के लिये अपने परिश्रम तथा बुद्धि को दिशा दी है। इन्हीं से उसने अपने अन्दर सद्गुणों का विकास, तथा दुष्प्रवृत्तियों का परिमार्जन किया है। इन्हीं सद्गुणों से उसने “मानव” होने की गरिमा भी प्राप्त की है। इन्हीं से उसने धरा(पृथ्वी) पर अपने श्रेष्ठ होने को सिद्ध किया है। अतः वे बातों या प्रत्यय जो कि मानव के चारित्रिक गुणों के विकास के साथ साथ उसके प्रत्येक भौतिक, शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक आदि पक्ष को विकास करती हैं एवं श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर बनाती हैं, उन्हें हम मूल्य कहते हैं।

मूल्य की खोज तथा इतिहास

मूल्य की खोज तथा इतिहास- 

प्रत्येक सभ्यता ने चाहे वह ग्रीक हो, रोमन हो या भारतीय हो उसके अस्तित्व के आधार चिरन्तन मूल्य ही रहे हैं। इन मूल्यों ने ही उन सभ्यताओं को समय के प्रवाह में स्थिर तथा सुसंस्थापित रखा है। प्रमुख ग्रीक विचारक प्लेटो ने न्याय, साहस तथा संयम को प्रमुख मूल्य मानते हुये “अच्छा” (Good) को मूल्यों के उच्चतर क्रम में शीर्ष पर स्थापित किया है। प्लेटो के अनुसार अन्य मूल्य एवं अस्तित्व इसी की प्राप्ति के लिये चलायमान होते हैं। इसी लिये अरस्तु आदि विचारकों ने इसे Unmoved Mover  की भी संज्ञा दी है।

 

मूल्यों के प्रकार(Types of Value)-1

 

     आधुनिक परम्परा में मूल्य वैयक्तिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सभी स्तरों पर मूल्यों के महत्व को समझा जाता है। इसी के अनुरूप मूल्य का वर्गीकरण या प्रकार अधोलिखित रूप से हो सकता है।

 

Figure : Types of Value

            Source :

                        National Value : Indian Constitution,

                        International Value        : U.N.O Resolution & Charters

 

“पुरुषार्थ”- भारतीय परम्परा में मूल्य

 
 

भारतीय परम्परा में चिरन्तन एवं स्थायी मूल्यों को खोजने का प्रयास किया है। इसी के अन्तर्गत भौतिक मूल्यों की अपेक्षा आध्यात्मिक मूल्यों को अधिक श्रेष्ठ निरूपित किया गया है। उपनिषदों में आत्म तथा ब्रह्म को ही परम मूल्यों के रूप में व्याख्यायित किया गया है। भारतीय परम्परा में मूल्यों का विवेचन जिस शीर्षक के अन्तर्गत होता रहा है – वह है “पुरुषार्थ”। पुरुषार्थ से अभिप्राय उन बातों या विचारों से है जो कि पुरुष (व्यक्ति/कर्ता) को अर्थ या मन्तव्य प्रदान करती हैं। इसी सन्दर्भ में चिन्तकों ने चार पुरुषार्थों की अवधारणा को प्रस्तुत किया है – 

 

Name of Value

 

Nature of Value

1.       

धर्म पुरुषार्थ

Social-Ethical Values

Regulative/Authoritative

2.       

अर्थ पुरुषार्थ

Politico-economic Values

Extrinsic/Mean Value

3.       

काम पुरुषार्थ

Psycho-physical, Pleasure Value

Intrinsic/End Value

4.       

मोक्ष पुरुषार्थ

Spiritual Value

Intrinsic Value

 Table : Indian traditional Values (Purushartha) 

संक्षिप्त विवेचन (Short description) -

धर्म - धर्म “धृ” धातु से निष्पन्न है, जिसका सरल अर्थ “धारण करना है” अर्थात् जिनसे लोक, परलोक, स्वास्थ्य, समाज, आदि का धारण होता है, वे सभी धर्म के अन्तर्गत समाहित होते हैं। इसीलिये धर्म या धार्मिक मूल्यों के अन्तर्गत शिष्टाचार के मापदण्ड, नैतिक-नियम, लौकिक-नियम, शरीर के प्रति धर्म, समाज के प्रति धर्म, अन्य प्राणियों के प्रति धर्म यहाँ तक की पेड़-पौधे आदि वनस्पति जगत के प्रति भी धर्म के रूप में नियमों की वृहद व्याख्यायें मिलती हैं। ये सभी वस्तुतः नियन्त्रककारक घटक या तत्त्व भी कहे जा सकते हैं जो कि मानव को नियन्त्रित करते है, तथा उसे पशुत्व से देवत्व के प्रति उन्मुख करते हैं। इसी लिये धर्म के मूल्यों के क्रम में प्रथम स्थान पर रखा गया है।

 अर्थ - अर्थ से अभिप्राय साधनपरकता है, तात्पर्य है कि किसी भी कार्य को करने के लिये जिस भी साधन की आवश्यकता होगी वह ही उसका साधन मूल्य होगा, साधन के बिना किसी परिणाम की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसीलिये अर्थ के अन्तर्गत धन, रूपये पैसे, भूमि, सुवर्ण, मित्र इत्यादि सभी को शामिल किया गया है।

 काम - काम से तात्पर्य है इच्छा, कामना, सुख आदि। किसी भी कार्य या चेष्टा का प्रारम्भ बिना इच्छा के नहीं हो सकता। प्रारम्भ में किसी न किसी रूप में इच्छा का होना अनिवार्य है। इस इच्छा के परिणाम स्वरूप उस कार्य में व्यक्ति प्रवृत्ति होती है, तब वह उसको करने को तत्पर होता है, यहीं साधन की अपेक्षा होती है जो कि अर्थ से मिलती है परन्तु साधनों का भी उपयोग ऐसा हो कि यह अपनी इच्छा की पूर्ति के साथ अन्यों की इच्छा या अस्तित्व का बाधक न बनें यहीं पर धर्म के नियन्त्रककारकता की आवश्यकता होती है। इस प्रकार काम, अर्थ एवं धर्म तीनों को मिलाने से ही शारीरिक एवं सामाजिक  व्ययवहार संभव हो पाता है। इसलिये तीनों ही आवश्यक मूल्य के रूप में परिगणित किये गये हैं। किन्तु भारतीय चिन्तन धारा यहीं तक नहीं विरमित होती है, वरन वह ऐसे मूल्य को भी व्याख्यायित करती है, जो कि उपरोक्त तीनों से किन्हीं अर्थों में विशिष्ट माना गया है। यह आध्यात्मिक मूल्य या मोक्ष है।

 मोक्ष - मुच् धातु से बना है, जिसका साधारण अर्थ है – छूटना। भारतीय परम्परा में अस्तित्व को एक जन्म तक सीमित न मानकर अनेक जन्मों तथा कर्मफलों के प्रवाह के रूप में देखा गया है। इन्हीं से छूटना मोक्ष कहा गया है। यह आध्यात्मिक मूल्य है।

 
 

शाब्दिक अर्थ

 
 

शाब्दिक या व्युत्पत्यात्मक (Etymology) विवेचन-

      मूल्य शब्द की निष्पत्ति(उत्पत्ति) “मूल” से हुयी है, संस्कृत व्याकरण की स्रोत पाणिनी की अष्टाध्यायी में मूल शब्द को दो बार व्याख्यायित किया गया है।

      “मूल” से सरल अर्थ, जड़ है। अर्थात्, वह अन्तिम स्रोत जो कि समस्त गतिविधि को संचालित करता है, दिशा देता है, जैसे पेड़ की जड़ न केवल पेड़ को स्थिर रखती है, वरन जीवन्त(हरा-भरा) भी रखती है, और इस प्रकार उसके अस्तित्व का आधार भी है। इसी प्रकार मूल्य भी न केवल समस्त गतिविधि को दिशा देते हैं, प्रेरणा का आधार होते हैं एवं कर्तव्य-कर्मों को सार्थकता प्रदान करते हैं।

      मूल्य के लिये अग्रेंजी में “Value” है। “Value” की निष्पत्ति ग्रीक “Velore” से हुयी है जिसका तात्पर्य “Worth” है। एवं इसका अर्थ है - सार, महत्व। यह सार या महत्व किसी कर्म के परिणाम, प्रभाव या गुण के सन्दर्भ में मापित किया जाता है। यही उसकी Value या मूल्य होता है।

 

मूल्य की परिभाषायें (Definition of Value)

      मूल्यों का अध्ययन प्राचीन समय में धर्मशास्त्र एवं दर्शनशास्त्र के अन्तर्गत एवं वर्तमान में Axiology या मूल्यशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। विभिन्न विद्वानों, विचारकों एवं दार्शनिकों नें मूल्य को विभिन्न प्रकार से परिभाषित करने का प्रयास किया है। उनकी परिभाषाओं के प्रमुख घटक अधोलिखित हैं -

क्र.

मूल्य की परिभाषा के प्रमुख घटक

English term

विचारक/संप्रदाय

Place of origin

Time period

1.    

सुख के रूप में

Pleasure

एपिक्यूरियन्स

Greek

400 B.C.

2.    

अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख के रूप में

Greatest Pleasure for greatest numbers

जरमी बेंथम

British

17-1800 Century

3.    

उपयोगिता के रूप में

Utility

 

American

19-20 century

4.    

अच्छी इच्छा के रूप में

Good Will

कांट, इम्मेन्युअल

German

17th Century

5.    

उद्विकास

Evolution

चार्ल्स डार्विन, सिजविक

British

17-1800 Century

6.    

रूचि के रूप में

Interest, General interest

पैरी, बर्ट्रेंड रसेल

British

19th Century

7.    

स्वर्ग(पारलौकिकता) के रूप में

 

Heaven & Hell

धर्मशास्त्र(सभी प्रमुख धर्मों के)

Asia

Since the Major Religions evolved

8.    

मोक्ष(आध्यात्मिकता) के रूप में

Liberation, Emancipation

दर्शनशास्त्र, धर्मशास्त्र

Major Religions evolved

Table : factors in various definition of values by thinkers, their country & time periods

            मूल्य शब्द आधुनिक सन्दर्भ में समाजशास्त्रियों(Sociologist), नृतत्ववैज्ञानिकों(Anthropologists), अर्थशास्त्रियों(Economists) एवं नीति-मीमांसकों(Axiologists-Ethical Philosophers) के लिये अत्यन्त महत्व तथा शोध का विषय होता है। यहाँ तक की सामान्य व्यक्ति भी कियी भी कर्म के सुकृत्य या दुष्कृत्य, उसके निकट एवं दूरगामी परिणामों तथा प्रभावों के बारे में जब सोचता है, तब वह वस्तुतः मूल्यों के विषय में ही चिन्तन कर रहा होता है। इस प्रकार मूल्यों का उदय अपने कर्तव्य-कर्मों एवं गतिविधियों पर आलोचनात्मक अनुचिन्तन की प्रक्रिया के तहत् होता है। उपरोक्त सन्दर्भ से मूल्य को हम साधारण अर्थ में इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं -

“जब किसी कृत्य, कर्म, विचार या प्रक्रिया के गुणवत्ता, प्रभाव एवं परिणाम पर तर्कसंगत तथा बौद्धिक ढंग से विचार किया जाता है, और यह विचार न केवल व्यक्ति के लिये स्वयं वरन् अन्य के लिये भी उसी अनुपात में समान रूप से लागू होता है, साथ ही वह अपने पूर्णीकरण से गहन सन्तोष (Satisfaction) की अनुभूति भी कराता है, तब वह मूल्य कहलाता है।”

 

मूल्य की विशेषताएँ

  इस प्रकार मूल्य के उपरोक्त विवेचन में निम्न विशेषतायें बतलायी जा सकती हैं – 

*      मूल्य वैयक्तिक से सार्वभौमिक पर्यन्त स्वरूप के हो सकते हैं

*      मूल्य के सम्बन्ध में व्यक्ति में आरम्भिक विधानात्मक(Positive)विश्वास होता है,

*      मूल्य उच्चता, यथेष्ठता, श्रेयसता को अभिव्यक्त करते हैं,

*      मूल्य आदर्श होते हैं, प्राप्ति के समय में व्यक्ति से बाहर होते हैं,

*      निम्नतर मूल्य उच्चतर मूल्यों में परिवेष्टित (समाहित) होते हैं, यही मूल्यों के साधन एवं साध्य का आधार भी है।

Strategy for Understanding

Strategy for Understanding

 

*    Concept of Value –

 

         How we come to the notion of Value

         What comprises value?

         Reflective thinking & Judgment – evolution of the Concept

 

 

*    Definition of Value –

 

         Etymology of the word “Value”

         General understanding

         Various definitions – critical analysis

         Standard definition

 

 

*    Types of Value –

 

         Indian Traditional Value

         Criterion for classification –

        Means & End Value

        Instrumental & Final Value

        Individual, Social, National and International Values

     
 
 

Authored & Developed By               Dr. Sushim Dubey

&दार्शनिक-साहित्यिक अनुसंधान                      ?  डॉ.सुशिम दुबे,                             G    Yoga

Dr. Sushim Dubey

This study material is based on the courses  taught by Dr. Sushim Dubey to the Students of M.A. (Yoga) Rani Durgavati University, Jabalpur  and the Students of Diploma in Yoga Studies/Therapy of  Morarji Desai National Institute of Yoga, New Delhi, during 2005-2008 All rights reserved.