-Concise Encyclopedia of Yoga

That all what you wanted to know about Yoga!

Yogic concepts Traditions Ancient Texts Practices Mysteries 

   
Root Home Page
Index

About Yoga

Yoga Practices & Therapy
Yoga Sutra & commentaries
Yoga Schools
Traditional Texts of Yoga
Yoga Education
Modern Yogis
Yogic Concepts
Yoga Philosophy
Yoga Psychology
Yoga & Value
Yoga & Research
Yoga & Allied Sc.
Yoga & Naturopathy
List of all Topics
 
 
     
CONTENTS
|“शिक्षा”|“शिक्षा” एवं “मूल्य”का अर्थ|मूल्याधारित शिक्षा की आवश्यकता तथा अर्थ|वर्तमान शिक्षा का परिदृश्य|मूल्योन्मुखी शिक्षा – परिभाषा|मूल्योन्मुखी शिक्षा - राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संस्थायें|मूल्याधारित या मूल्योन्मुखी शिक्षा के घटक| योग तथा मूल्योन्मुखी शिक्षा|मूल्योन्मुखी शिक्षा के अन्तर्गत योग के आयाम|Strategy for Understanding|

Yoga Education - 2

मूल्याधारित-शिक्षा एवं योग

Value Oriented Education & Yoga

अन्य लिंक : Education & Yoga | Indian Constitution and Education | मूल्याधारित-शिक्षा एवं योग |योग – एक वैश्विक मूल्य|

शिक्षा

भूमिका(Introduction) -

          किसी भी कार्य को करने के लिये उसका ज्ञान (Knowledge) आवश्यक है, ज्ञान के पश्चात् उसके किये जाने के तरीके (Methodology) का बोध होना भी अनिवार्य है। इसके पश्चात् उस कृत्य के सुपरिणाम तथा दुष्परिणाम (Results – positive or negative)  की समझ व्यक्ति को उस कृत्य की ओर प्रेरित करने या करने में अहम भूमिका निभाती है। अन्तोगत्वा उस कर्म या कृत्य के दूरगामी परिणाम तथा प्रभावों (consequence/future effects) को मिलाकर देखने पर उस कृत्य कर्म का समग्र परिदृश्यात्मक बोध निर्मित होता है। इन्हीं उपरोक्त निर्णयों एवं उद्देश्यों का ज्ञान तथा विधिवत् बोध कराने की जो प्रणाली या विधि है उसे ही सरल अर्थों में शिक्षा से अभिहित किया जाता है।

शिक्षा एवं मूल्यका अर्थ

शिक्षा एवं मूल्यका अर्थ  (Etymology of “Education” & Value) -

शिक्षा शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की शिक्ष् धातु से हुयी है, जिससे अभिप्राय है, सीखना, अर्जित करना, ग्रहण करना, ज्ञानात्मक रूप से संवृद्ध होना।

 अंग्रेजी में शिक्षा के लिये “Education” शब्द है, जो कि ‘Educere’ (Latin) से बना हुया है, जिससे तात्पर्य होता है ‘to lead’, ‘to draw’, to acquire’ अर्थात् आगे बढ़ना, निकालना, खींचना(ग्रहण), अर्जित करना। तात्पर्य है कि जो बातें व्यक्तित्व तथा चरित्र के निर्माण में सारभूत हैं उनके अर्जित करना(acquire), उनकी प्राप्ति की ओर अग्रसर(lead) होना।

 मूल्य के लिये अग्रेंजी में “Value” है। “Value” की निष्पत्ति लैटिन “Velere” से हुयी है जिसका तात्पर्य “to be Worthy” है। एवं इसका अर्थ है - सार, महत्व। यह सार या महत्व किसी कर्म के परिणाम, प्रभाव या गुण के सन्दर्भ में मापित किया जाता है। यही उसकी Value या मूल्य होता है।

मूल्याधारित शिक्षा की आवश्यकता तथा अर्थ

मूल्याधारित शिक्षा की आवश्यकता तथा अर्थ

(V.O.E. – Necessity & Meaning) 

यदि शिक्षा का अर्थ निकालना, ग्रहण करना या अर्जित करना है, तो मूल्याधारित शिक्षा का अर्थ होगा जो मूल्य अर्थात् सार या महत्व है, उसको निकालना या अर्जित करना। इसी सन्दर्भ में उपनिषत् मे कहा गया है  

                   असतो मा सद्गमय              Lead us from untruth to truth,

                   तमसो मा ज्योतिर्गमय       from darkness to light, and

                   मृत्योर्मामृतं गमय।           from mortality to immortality. 

अर्थात् हमें असत् से सत् की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर तथा मृत्यु से अमृतत्त्व की ओर ले चलो। विवेकानन्द ने भी शिक्षा की यही परिभाषा दी है कि “Education is the manifestation of the essence of a man.” 

शिक्षा में व्यक्ति, समाज तथा राज्य के अनिवार्य तत्त्वों को शामिल किये जाने की आवश्यकता रहती है। तब ही वह समग्र तथा पूर्ण शिक्षा हो पाती है। वास्तव में शिक्षा व्यक्तित्व तथा चरित्र निर्माण का सर्वाधिक सशक्त साधन है।

 

वर्तमान शिक्षा का परिदृश्य

 
 

वर्तमान शिक्षा का परिदृश्य (Education Modern Scenario) –  

वर्तमान में शिक्षा का स्वरूप अत्याधुनिक है। विविध विषयों के विशिष्ट अध्ययन की परिपाटी प्रचलन में है। ये विविध विषय प्रायः विज्ञान, चिकित्सा, तकनीकि आदि के होते हैं। इसके अतिरिक्त कला, कम्प्यूटरविज्ञान, व्यवसाय तथा प्रबन्धन परक विषयों का अध्ययन महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के माध्यम से होता है। यद्यपि ये विषय समाज एवं राष्ट्र के लिये अत्यावश्यक हैं तथा समाज एवं राष्ट्र के विकास में इनकी भूमिका अहम है। किन्तु इतने  विविध विषय तथा नैपुण्यता परक ज्ञान के पश्चात् भी जिस चीज की कमी व्यक्ति तथा समाज में चिन्तकों के द्वारा अनुभूत की जा रही है वह है – 

*           मानवीय मूल्य (Humanistic Values)

§                 सद्भाव, प्रेम, सौहार्द्र, अहिंसा, निःस्वार्थपरकता आदि में कमी,

*           राष्ट्रीय मूल्य (National Value)

§                 देशभक्ति की भावना, राष्ट्रीय एकता की भावना, राष्ट्रीय अवदानों में गरिमान्विता का भाव, त्याग आदि के प्रति दृढ़ता में कमी, तथा

*           अन्तर्राष्ट्रीय मूल्यों (International Value)

§                 मानवाधिकार, शान्ति, इको सिस्टम आदि के प्रति कमी महसूस की जा रही है।  

इन मूल्यों के प्रति उदासीनता के फलस्वरूप सामाजिक विघटन, स्वार्थपरकता, हिंसा, घृणा, राष्ट्र के प्रति असम्मान या उदासीनता का भाव जनित होता है। सांस्कृतिक मूल्यों में अनास्था के परिणाम स्वरूप संस्कृति का क्षय, जनरेशन गेप, ओल्ड एज़पीपुल्स प्रोब्लम्स, परिवार का विघटन, विवाह सम्बन्धों का टूटना, मानव को मशीन समझना जिससे उपभोक्तावाद आदि की विषाद जनक स्थित उत्पन्न होती है। इन्हीं के अत्यधिक बिगड़ने से सामाजिक क्लेश, व्यापक अशान्ति, जीवन में/से असंतुष्टि, असुरक्षा, अपराध, तथा आतंकवाद, जैसी विभीषिकाएँ जन्म लेती है। इन विभीषिकायों के कारण समाजिक, राष्ट्रीय असन्तुलन की स्थित उत्पन्न होती है। 

 
 

मूल्योन्मुखी शिक्षा परिभाषा

 
 

मूल्योन्मुखी शिक्षा परिभाषा (V.O.E. – Definition) -     

          उपरोक्त परिणामों के मद्देनजर उपरोक्त वैयक्तिक एवं मानवीयमूल्य, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मूल्यों को शिक्षा में सम्मिलित करने की नितान्त आवश्यकता होती है। इसी लिये आधुनिक परिप्रेक्ष्य में शिक्षा के केवल शिक्षा कहकर मूल्योन्मुखी शिक्षा कहा जाता है। इस प्रकार मूल्योन्मुखी शिक्षा की सामान्य परिभाषा हम इस प्रकार कह सकते हैं कि वह

         मूल्योन्मुखी शिक्षा वह है जो कि व्यक्ति के मनोदैहिक पक्षों के समग्र विकास के साथ, उसमें सामाजिक मूल्यों के प्रति बोध जगा सके, राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता की गरिमामय अनुभूति के साथ अन्तर्राष्ट्रीय भावों के अनुरूप व्यक्ति का विकास करने में सहायक हो, जिससे वह स्वयं के प्रति, परिवार के प्रति तथा समाज एवं राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य-कर्मों को दक्षता पूर्वक निभा सके।

 इस प्रकार मूल्योन्मुखी शिक्षा में व्यक्ति में निहित सम्भावनाओं के सम्पूर्ण विकास के साथ समाजिक एवं राष्ट्रीय आकाक्षांओं के पूर्णीकरण का आदर्श समाहित किया गया है।

 
 

मूल्योन्मुखी शिक्षा - राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संस्थायें

 
 

मूल्योन्मुखी शिक्षा - राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संस्थायें -

(V.O.E. – National & International Agencies) 

हमारे देश मे शिक्षा के उपर्युक्त उद्देश्यों के अनुरूप सरकार के द्वारा National Policy on Education (1992) के तहत् कहा गया है कि – 

“ …value education is an integral part of school curriculum. It highlighted the values drawn from national goals, universal perception, ethical considerations and character building. It stressed the role of education in combating obscurantism, religious fanaticism, exploitation and injustice as well as the inculcation of value.” 

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) की संस्था यूनेस्को (UNESCO) के द्वारा भी शिक्षा के मूल्योन्मुखी होने कहा गया है। इसमें शिक्षा के कार्यक्रमों में शान्ति(Peace), मानवाधिकार(Human Rights) तथा मानववादी दृष्टिकोणों(Humanistic Outlook) को समर्थित किया गया है।

 
 

मूल्याधारित या मूल्योन्मुखी शिक्षा के घटक

 
 

मूल्याधारित या मूल्योन्मुखी शिक्षा के घटक

(The Components of Value Oriented Education)

 

          मूल्योन्मुखी शिक्षा के घटक से अभिप्राय है उन तत्त्वों से है जिनसे मूल्योन्मुखी शिक्षा घटित होती है, अर्थात् बनती है। निश्चित रूप से उपरोक्त विवेचन के आलोक में हम कह सकते हैं कि मूल्योंन्मुखी शिक्षा के घटकों में अधोलिखित मन्तव्य समाहित होंगे

 

 

क्र.

मूल्योन्मुखी शिक्षा के घटक

Name of the factors of V.O.E.

1.

प्राचीन विरासत में संरक्षित तत्त्वों के आधार पर मानव निर्माण

 Building of Human beings with the strength and power based upon ancient heritage)

2.

दक्षता एवं समझ बढ़ाने वाले तत्त्व

Promotion understanding and Efficiency

3.

व्यक्तित्व एवं चरित्र निर्माण के घटक

Personality development and Character building

4.

राष्ट्रीय एकता, अखण्डता के घटक

National unity and Integration

5.

विकास तथा पुनर्निर्माण की क्षमता परक घटक

Development and Regeneration

6.

प्रेम तथा सौहार्द्र के तत्त्व

Affinity and fraternity

7.

शान्ति, सामञ्जस्य तथा समरसता परक घटक

Peace, Harmony and Coherence

8.

त्याग एवं समर्पण के घटक

Devotion and Dedication)

 
   
 

योग तथा मूल्योन्मुखी शिक्षा

 
 

योग तथा मूल्योन्मुखी शिक्षा 

          विगत् दशकों से शिक्षा के स्तर पर अनेक प्रयोग हुये हैं शिक्षा में प्रयोगात्मकता,  

 Figure : depicting the role of Yoga in Value oriented Education 

व्यवहारिकता तथा उपयोगात्मकता को लाने की प्रवृत्ति बढ़ी है। पूर्व में जहाँ शिक्षा में नैतिक शिक्षा तथा शरीर शिक्षण जैसे विषय रहे हैं जो कि विद्यार्थी के चरित्र निर्माण के साथ स्वस्थ्य शरीर के विकास में भी सहायक होते थे। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में नैतिक मूल्यों में ह्रास के साथ शारीरिक शिक्षण के प्रति भी रूझान में व्यापक कमी आयी है। ऐसे में एक ऐसे सशक्त माध्यम की आवश्यकता अनुभवित की गयी जो कि नैतिक मूल्यों के साथ शारीरिक मूल्य एवं आध्यात्मिक मूल्यों की भी अपरिहार्य शिक्षा दे सके। वास्तव में योग के प्रति वर्तमान शिक्षाविदों में बढ़ते रूझान का कारण यही है। किन्तु योग की शिक्षा नवीन नहीं है। प्राचीन परम्परा में सूर्य नमस्कार के साथ गुरुकुल में अध्ययन की परम्परा रही है। आज इन्हीं प्राचीन सन्दर्भों को आधुनिक परिवेश में पुनर्ज्जीवित करते हुये योग अधिकाधिक विद्यालयों एवं शिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रमों का अनिवार्य अंग होता जा रहा है।

 

 
 

मूल्योन्मुखी शिक्षा के अन्तर्गत योग के आयाम

 
 

मूल्योन्मुखी शिक्षा के अन्तर्गत योग के आयाम

(Dimensions of Yoga in Value Oriented Education) 

          योग सांगोपाग सर्वांगीण विकास का दूसरा नाम है। वास्तव में जो भी सारयुक्त, श्रेष्ठ, एवं श्रेयस है उसी से जुड़ना योग है। इसे ही आत्म तत्त्व आदि विभिन्न नामों से अभिहित किया गया है। इस रूप में योग आध्यात्मिक पूर्णीकरण तक का लक्ष्य रखता है। इसके अतिरिक्त आसन एवं प्राणायाम के अभ्यास के रूप में योग में शारीरिक अभ्यास एवं स्वास्थ्य के मूल्य समाहित हैं। यम एवं नियमों के रूप में इसमें सामाजिक-राष्ट्रिक-अन्तराष्ट्रिक मूल्य समाहित हैं। प्रत्याहार, धारणा एवं ध्यान केवल मानसिक दृढ़ता उत्पन्न करते हैं वरन् जागरूकता, संकेन्द्रण की क्षमता, दक्षता, भावनात्मकता को भी प्रबल बनाते हैं। इस प्रकार योग में शारीरिक, मानसिक, समाजिक, राष्ट्रिय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सभी मूल्यों के घटक किसी किसी मात्रा में सम्मिलित होते हैं। 

Table : depicting limbs of Yoga & their role in Value Oriented Education 

 

 

क्र.

 

The Limbs of Yoga

योगा के अंग

 Interpretation of the limbs of Yoga in Value Oriented Education

मूल्याधारित शिक्षा में योगांग मूल्य के रूप में

Level of Value

Personal

Social

National

Inter-

national

1.

सत्य

सार्वभौमिक मूल्य

Y

Y

Y

Y

2.

अहिंसा

सार्वभौमिक मूल्य

Y

Y

Y

Y

3.

अस्तेय

सामाजिक मूल्य

Y

Y

 

 

4.

अपरिग्रह

सामाजिक भेद-भाव को कम करने वाला, समानता लाने वाला, समाजवाद को पल्लवित करने वाला

Y

Y

 

 

5.

ब्रह्मचर्य

वैयक्तिक मूल्य

Y

 

 

 

6.

शौच

आन्तरिक एवं बाह्य शौच - वैयक्तिक मूल्य

मानसिक एवं शारीरिक शौचसामाजिक मूल्य भी

 

Y

 

Y

 

 

7.

सन्तोष

मानसिक मूल्य, सामाजिक, राष्ट्रिय-अन्तर्राष्ट्रीय समरसता के लिये भी आवश्यक, उपभोक्तावाद के शमन के लिये अनिवार्य, शान्ति का पूर्व आपेक्षित मूल्य

 

Y

 

Y

 

Y

 

Y

8.

तप

वैयक्तिक, किन्तु दृढ़ता एवं क्षमता बढ़ाने की दृष्टि से सार्वभौमिक मूल्य

Y

 

 

 

9.

स्वाध्याय

अनुचिन्तन के लिये अनिवार्य, अनुचिन्तन सहिष्णुता एवं आपसी समझ के लिये अपिरहार्य है।

Y

Y

Y

 

10.

ईश्वर

प्रणिधान

आध्यात्मिक मूल्य, आस्था का जनक

Y

 

 

 

11.

आसन

शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के मूल्य

Y

 

Y

Y

12.

प्राणायाम

जीवनशक्ति, कर्मशक्ति को बढ़ाने वाले ऊर्जामयता के मूल्य

Y

Y

Y

 

13.

प्रत्याहार

त्याग एवं संयम के मूल्य

Y

Y

Y

Y

14.

धारणा

संकेन्द्रण

Y

 

 

 

15.

ध्यान

शान्ति, सौहार्द्र के मूल्य

Y

Y

Y

Y

16.

समाधि

परम मूल्य, आध्यात्मिक पूर्णीकरण का मूल्य

Y

 

 

 

Table : depicting limbs of Yoga & their role in Value Oriented Education

 

 

Strategy for Understanding

Topic : Value Oriented Education & Yoga
 

*     Educational process

 

§         Why & How

 

*     Meaning & etymology of

 

§         Education

§         Value

 

*     Value Oriented Education (V.O.E.)

 

§         Necessity & Understanding of concept

§         Need & Role 

§         Definition of V.O.E.

§         V.O.E. – National & International Agencies

 

*     Components of Value Oriented Education

 

*     Yoga & V.O.E.

 

§         Limbs of Yoga & their role in Value Oriented Education

 

     
 
 

Authored & Developed By               Dr. Sushim Dubey

&दार्शनिक-साहित्यिक अनुसंधान                      ?  डॉ.सुशिम दुबे,                             G    Yoga

Dr. Sushim Dubey

® This study material is based on the courses  taught by Dr. Sushim Dubey to the Students of M.A. (Yoga) Rani Durgavati University, Jabalpur  and the Students of Diploma in Yoga Studies/Therapy of  Morarji Desai National Institute of Yoga, New Delhi, during 2005-2008 © All rights reserved.