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श्रीमच्छङ्कराचार्य विरचितं चर्पटपञ्जरी

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

प्राप्ते सन्निहिते मरणे

      नहि नहि रक्षति डुकृञ्करण ।।1।।

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

बालस्तावत्क्रीडासक्त

स्तरूणस्तावत्तरूणीरक्तः।

वृद्धस्तावच्चिन्तामग्नः परे

ब्रह्मणि कोऽपि न लग्नः ।।2।।

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

अंगं गलितं पलितं मुण्डं

      दशन विहीनं जातं तुण्डम्।

वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं

      तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम् ।।3।।

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं

      पुनरपि जननीजठरे शयनम्।

इह संसारे खलु दुस्तारे

      कृपयापारे पाहि मुरारे ।।4।।

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

दिनमपि रजनी सायं प्रातः

      शिशिरवसन्तौ पुनरायातः।

कालः क्रीडति गच्छत्यायु

स्तदपि न मुञ्चत्याशावायुः ।।5।।

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

जटिलो मुण्डी लुंचितकेशः

      काषायाम्बरबहुकृतवेषः।

पश्यन्नपि न च पश्यति मूढ़ः

      उदरनिमित्तं बहुकृतवेशः ।।6।।

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

वयसि गते कः कामविकारः

      शुष्के नीरे कः कासारः।

क्षीणे वित्ते कः परिवारो

      ज्ञाते तत्त्वे कः संसारः ।।7।।

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

अग्रे वन्हिः पृष्ठे भानुः

      रात्रौ चिबुकसमर्पितजानुः।

करतलभिक्षा तरुतलवास

      स्तदपि न मुञ्चत्याशापाशः ।।8।।

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

यावद्वित्तोपार्जनशक्त

      स्तावन्निजपरिवारो रक्तः।

पश्चाज्जर्जरभूते देहे

      वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे ।।9।।

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

रथ्याकर्पटविरचितकन्थः

      पुण्यापुण्यविवर्जितपन्थः।

न त्वं नाहं नायं लोक

      स्तदपि किमर्थं क्रियते शोकः ।।10।।

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

नारीस्तनभरजघननिवेशं

      दृष्ट्वा मायामोहावेशम्।

एतन्मासवसादिविकारं

      मनसि विचारय वारम्वारम् ।।11।।

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

गेयं गीतानामसहस्रम

      ध्येयं श्रीपतिरूपमजस्रम्।

नेयं सज्जनसंगे चित्तं

      देयं दीनजनाय च वित्तम् ।।12।।

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

भगवद्गीता किञ्चिदधीता

      गंगाजललवकणिका पीता।

येनाकारि मुरारेरर्चा

      तस्य यमः किं कुरुते चर्चाम् ।।13।।

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

कोऽहं कस्त्वं कुत आयातः

      का मे जननी को मे तातः।

इति परिभावय सर्वमसारं

       सर्वं त्यक्त्वा स्वप्नविचारम् ।।14।।

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

का ते कान्ता कस्ते पुत्रः

संसारोऽयमतीव विचित्रः।

कस्य त्वं कः कुत आयात

      स्तत्त्वं चिन्तय मनसि भ्रान्तः ।।15।।

 

भज गोविन्दं भज गोविन्दं

      गोविन्दं भज मूढ़मते।

सुरतटिनीतरूमूलनिवासः

      शय्याभूतलमजिनं वासः।

सर्वपरिग्रहभोगत्यागः

      कस्य सुखं न करोति विरागः ।।16।।